‘Salakaar’Review:
जब 1978 में ही पाकिस्तान का न्यूक्लियर सपना
तोड़ने निकला भारत का जासूस!
‘1978 में, अधीर दयाल, जो भारत की खुफिया एजेंसी RAW के एक बहादुर गुप्त एजेंट हैं, पाकिस्तान के काहुटा
में बने गुप्त परमाणु ठिकाने को नष्ट करने के लिए एक खतरनाक मिशन पूरा करते हैं।
लेकिन कई साल बाद, 2025 में, उस मिशन
की परछाइयाँ फिर सामने आने लगती हैं—एक नई साज़िश के साथ,
जो इतिहास बदल सकती है और पूरे उपमहाद्वीप का भविष्य तय कर सकती है। ‘
दोस्तों, एक पल के लिए सोचिए... साल है 1978। भारत का सबसे काबिल जासूस, जो आगे चलकर देश का NSA
(राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) बनने वाला है, वो
चुपके से पाकिस्तान में घुस जाता है। उसका मिशन? पाकिस्तान
के तानाशाह जनरल ज़िया के न्यूक्लियर बम बनाने के सपने को हमेशा के लिए चकनाचूर कर
देना।
सुनने
में किसी ब्लॉकबस्टर फिल्म की कहानी लग रही है ना? बस यही कहानी लेकर आई है Jiohotstar
की नई वेब सीरीज ‘Salakaar '(सलाहकार) । तो तैयार हो जाइए, क्योंकि हम टाइम मशीन
में बैठकर दो अलग-अलग दौर की जासूसी की दुनिया में गोता लगाने वाले हैं!
कहानी क्या है? दो दौर, एक मिशन
‘Salakaar’ एक स्पाई-थ्रिलर सीरीज है, जिसकी प्रेरणा भारत के एक
मशहूर जासूस की जिंदगी की कुछ रियल घटनाओं से ली गई है। सीरीज में कुल 5 एपिसोड हैं और हर एपिसोड लगभग 30-35 मिनट का है।
यानी आप वीकेंड पर आराम से 3 घंटे निकालकर इस पूरी सीरीज को
एक बार में खत्म कर सकते हैं।
कहानी
की सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह दो अलग-अलग टाइमलाइन में एक साथ चलती है:
1.
1978 का दौर: कहानी का मुख्य हीरो है 'अधीर' (नवीन कस्तूरिया), जो असल में भारत के एक मशहूर जासूस
से प्रेरित एक काल्पनिक किरदार है। उस वक्त पाकिस्तान में जनरल ज़िया-उल-हक़ एक
सीक्रेट न्यूक्लियर मिशन पर काम कर रहा होता है। भारत को इसकी भनक लगते ही अधीर को
पाकिस्तान भेजा जाता है ताकि वो इस मिशन को किसी भी हाल में फेल कर सके। यह देखना
बेहद रोमांचक है कि कैसे एक अकेला भारतीय जासूस दुश्मन की धरती पर घुसकर उनके पूरे
प्लान पर पानी फेरता है।
2.
2025 का दौर: कहानी सीधे भविष्य में छलांग लगाती है। यहाँ जनरल ज़िया का पोता, अशफ़ाक़ उल्लाह (अयान लाल), अपने दादा के अधूरे मिशन
को पूरा करने के लिए निकला है। लेकिन इस बार उसे रोकने के लिए भेजी जाती है एक
तेज-तर्रार इंडियन अंडरकवर एजेंट 'मोनी रॉय'।
तो
एक तरफ अतीत में चल रही जंग है और दूसरी तरफ भविष्य में उसी जंग की नई किश्त। यह
कॉन्सेप्ट वाकई में शानदार है।
सीरीज में क्या अच्छा है? (The Good Stuff)
- प्रोडक्शन और विजुअल्स: भाई साहब, इस मामले में मेकर्स ने कोई कमी नहीं
छोड़ी है। प्रोडक्शन वैल्यू टॉप-नॉच है। चाहे 1978 के
पाकिस्तान को दिखाना हो या 2025 का हाई-टेक लुक,
सब कुछ बेहद ग्रैंड और सिनेमैटिक लगता है। आपको स्क्रीन पर
देखकर वाकई में महसूस होगा कि आप उस दौर में पहुंच गए हैं।
- टाइट स्क्रीनप्ले: सीरीज की कहानी आपको बांधकर रखती है। स्क्रीनप्ले इतना कसा हुआ है कि
आपको एक भी पल बोरियत महसूस नहीं होती। फालतू में कहानी को खींचने वाला एक भी
सीन नहीं है। हर सीन का एक मकसद है, जो कहानी को तेजी
से आगे बढ़ाता है और आपकी दिलचस्पी बनी रहती है।
- सिनेमैटोग्राफी और डायरेक्शन: डायरेक्शन और सिनेमैटोग्राफी के लिए पूरे नंबर। हर फ्रेम बहुत
खूबसूरती से शूट किया गया है, जो इसे एक फिल्म जैसा फील
देता है।
कहाँ रह गई कमी?
(The Not-So-Good Stuff)
कहानी
और प्रेजेंटेशन सॉलिड है, लेकिन
इसका मतलब यह नहीं कि इसमें कोई कमी नहीं है।
- प्रेडिक्टेबल कहानी: अगर आप एक फुल-ऑन सस्पेंस थ्रिलर की उम्मीद कर रहे हैं, तो थोड़ी निराशा हो सकती है। सीरीज में सस्पेंस कम और प्रेडिक्शन
ज्यादा है। आप हर ट्विस्ट पर सोचेंगे, "
अरे,
ये तो होना ही था।" लेकिन कहानी का मजा इस बात में है कि
वो होगा 'कैसे', और यह देखने में
आपको मज़ा जरूर आएगा।
- एक्टिंग का मिला-जुला असर:
- नवीन कस्तूरिया (अधीर): 'Aspirants'
जैसे शो में अपनी लाजवाब एक्टिंग से दिल जीतने वाले नवीन
कस्तूरिया का परफॉर्मेंस यहाँ थोड़ा मिक्स लगा। जब वो गुस्से में जनरल ज़िया
के एक आदमी के घर में घुसते हैं, तो उनकी एंग्री
एक्टिंग उन पर बिल्कुल भी सूट नहीं करती। वो सीन थोड़ा ज़बरदस्ती का लगता
है। हालांकि, बाकी सीन्स में वो ठीक लगे हैं।
मौनी रॉय: मौनी रॉय का रोल ठीक-ठाक
था, लेकिन उनके कैरेक्टर को हर वक्त
बस घबराया हुआ और परेशान दिखाया गया है। उन्हें स्क्रीन टाइम भी कम मिला और उनके
पास करने के लिए ज्यादा कुछ था नहीं।
अयान लाल : जो एक्टर जनरल
ज़िया के पोते का रोल कर रहे हैं, उन्हें देखकर लगता है कि पाकिस्तान का भविष्य बिल्कुल सेफ है! क्योंकि वो
विलेन कम और एक कन्फ्यूज्ड स्टूडेंट ज्यादा लगते हैं। उनके किरदार में वो दम नहीं
दिखता, जो एक खतरनाक विलेन में होना चाहिए।
शो का तुरुप का इक्का: मुकेश ऋषि
इन
सब कमियों के बीच एक एक्टर ऐसा है, जिसने पूरी बाजी पलट दी। वो हैं मुकेश ऋषि,
जिन्होंने जनरल ज़िया-उल-हक़ का किरदार निभाया है। भाई साहब, उन्होंने इस किरदार
को जीया है! जब भी वो स्क्रीन पर आते हैं, उनके किरदार की
पावर और प्रजेंस आपको साफ महसूस होती है। उन्होंने अपने अभिनय से शो का लेवल ही
अलग कर दिया है।
आखिरी फैसला: किसे देखनी चाहिए यह सीरीज?
तो
सवाल आता है कि क्या आपको यह सीरीज देखनी चाहिए? देखिए, जवाब सीधा है।
- अगर आप Special Ops,
The Family Man या Raazi जैसी स्पाई-थ्रिलर्स के फैन हैं और बहुत सारी सीरीज देख चुके हैं,
तो शायद आपको ‘Salakaar’ का कंटेंट थोड़ा
हल्का (माइल्ड) लगे।
- लेकिन, अगर आप
इस जॉनर में नए हैं या एक अच्छी, एंटरटेनिंग और आसान
कहानी देखना चाहते हैं, तो यह सीरीज आपको जरूर पसंद
आएगी। आपका टाइमपास तो गारंटीड है।
मेकर्स
ने सीजन 2 के लिए रास्ता साफ-साफ खुला
छोड़ा है, तो उम्मीद है कि कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है।
मेरी रेटिंग:
मेरी
तरफ से इस सीरीज को मिलते हैं 5 में से 3.5 स्टार्स (3.5/5 ★)।
एक बार ट्राई ज़रूर कर सकते हैं। तीन घंटे में खत्म होने वाली यह सीरीज एक सॉलिड वीकेंड टाइमपास है।
अस्वीकरण (Disclaimer):
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