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सारे जहाँ से अच्छा : रिव्यू: एक दमदार स्पाई थ्रिलर !

सारे जहाँ से अच्छा : रिव्यू: एक दमदार स्पाई थ्रिलर !

 

नमस्ते दोस्तों! तो चलिए शुरू करते है लेकर प्रभु का नाम 🙏

ऐतिहासिक फिल्में और शो देखना हमेशा एक अलग अनुभव होता है, खासकर जब कहानी किसी देश के न्यूक्लियर प्रोग्राम के इर्द-गिर्द घूमती हो। ये कहानियां हमें दिखाती हैं कि कैसे एक ही घटना को देखने के अनगिनत नजरिए हो सकते हैं। कहानी वही रहती है, बस बैकग्राउंड म्यूजिक और कैमरा एंगल बदलने से पूरी भावना बदल जाती है। एक देश के लिए जो जीत का जश्न होता है, वो दूसरे देश के लिए त्रासदी बन जाता है। एक देश के लिए जो 'रॉकेट बॉयज़' या 'परमाणु' की गौरव गाथा है, वही दूसरे के लिए 'ओपेनहाइमर' का स्याह सच।

कहते हैं कि इतिहास हमेशा विजेता लिखते हैं, लेकिन आज के दौर में शायद इतिहास वो लिखता है, जिसे सबसे पहले नेटफ्लिक्स पर सीरीज बनाने का मौका मिल जाता है। इसी कड़ी में नेटफ्लिक्स ने एक नई इंडियन ओरिजिनल सीरीज पेश की है - सारे जहाँ से अच्छा

ऐक्टर:
प्रतीक गांधी,सनी हिंदुजा,सुहैल नायर,तिलोत्तमा शोम,अनूप सोनी,कृतिका कामरा,रजत कपूर,कुणाल ठाकुर

श्रेणी:Hindi, Thriller, Drama, Spyडायरेक्टर :सुमित पुरोहित

कहानी क्या है? (The Premise)

यह सीरीज हमें 70 के दशक में ले जाती है और भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी 'रॉ' (RAW) के शुरुआती दिनों की कहानी दिखाती है। कहानी का केंद्र एक गुप्त ऑपरेशन है, जिसका मकसद पाकिस्तान द्वारा अपना पहला एटम बम बनाने और न्यूक्लियर पावर हासिल करने की शुरुआती कोशिशों को नाकाम करना है। यह एक हाई-स्टेक मिशन है, जहाँ एक चूक का मतलब तबाही हो सकता है।

सीरीज में रॉ एजेंट विष्णु शंकर का मुख्य किरदार प्रतीक गांधी ने निभाया है, जो इस पूरे ऑपरेशन के हैंडलर और कोऑर्डिनेटर हैं। उनकी टीम में कुछ भारतीय जासूस हैं, जो पाकिस्तानी नागरिक बनकर वहां undercover काम कर रहे हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य है - किसी भी कीमत पर पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकना।

अब, यह सीरीज ऐतिहासिक रूप से कितनी सटीक है, यह कहना मुश्किल है। लेकिन आजकल हम सबने सीख लिया है कि ऐसी कहानियों को पूरी तरह सच मानने की भूल नहीं करनी चाहिए।

सारे जहाँ से अच्छा : रिव्यू: एक दमदार स्पाई थ्रिलर !


सीरीज में क्या अच्छा है? (The Good Parts)


इससे पहले कि हम कमियों पर बात करें, आइए जानते हैं कि इस सीरीज में क्या कुछ अच्छा है।

1.       रेट्रो वाइब और प्रोडक्शन डिजाइन: सीरीज आपको 70 के दशक में ले जाने में काफी हद तक सफल होती है। प्रोडक्शन डिजाइनर सुकांता पाणिग्रही और कॉस्ट्यूम डिजाइनर वीरा कपूर ने उस दौर के माहौल, कपड़ों और सेटिंग्स को जीवंत करने का अच्छा काम किया है।

2.     पाकिस्तानी किरदारों का चित्रण: हिंदी फिल्मों में अक्सर पाकिस्तानी किरदारों को कार्टून विलेन की तरह दिखाया जाता है, लेकिन यह सीरीज उन्हें एक गरिमा, आयाम और इंसानियत देती है। यह एक स्वागत योग्य बदलाव है।

3.     दमदार एक्टिंग: प्रतीक गांधी, सनी हिंदुजा, सोहेल नैय्यर और तिलोत्तमा शोम जैसे कलाकारों ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया है। उनके अभिनय में एक सच्चाई और गहराई है जो कहानी को कई जगहों पर संभाले रखती है।




लेकिन... कहाँ रह गई कमी? (Where It Falters)

'सारे जहाँ से अच्छा' में एक बेहतरीन स्पाई थ्रिलर बनने की पूरी क्षमता थी - इसमें टेंशन है, जासूसी है, बैंक डकैती और किडनैपिंग जैसे तत्व भी हैं। लेकिन सीरीज शायद ही कभी उस तनाव को स्क्रीन पर महसूस करा पाती है। यहाँ कुछ बड़ी वजहें हैं:

1. हीरो, जो हीरो जैसा नहीं लगता:
प्रतीक गांधी एक बेहतरीन अभिनेता हैं, लेकिन उनका किरदार विष्णु शंकर टुकड़ों में बंटा हुआ लगता है। वह कभी एक दृढ़ निश्चयी आम आदमी है, कभी एक इंटरनेशनल मैन ऑफ़ मिस्ट्री, तो कभी सोने के दिल वाला स्पाई हैंडलर। लेकिन ये सारे टुकड़े मिलकर एक मुकम्मल किरदार नहीं बना पाते। हम दर्शक के तौर पर कभी समझ ही नहीं पाते कि विष्णु शंकर असल में कौन है, और इसलिए उससे जुड़ नहीं पाते।

2. विलेन जो हीरो पर भारी पड़ गया:
हैरानी की बात है कि सीरीज का असली हीरो विष्णु शंकर नहीं, बल्कि ISI हेड मुर्तज़ा लगता है, जिसे सनी हिंदुजा ने शानदार ढंग से निभाया है। मुर्तज़ा का किरदार ज्यादा मज़बूत, दिलचस्प और यादगार है। जब वह अपने देश को बचाने के लिए भारतीय जासूसों को पकड़ता और मारता है, तो हम अनजाने में उसके लिए रूट करने लगते हैं, क्योंकि सीरीज ने हमें उन भारतीय जासूसों से कभी मिलवाया ही नहीं। हमें मुर्तज़ा एक ऐसे देशभक्त की तरह दिखता है जो अपने राष्ट्र की रक्षा कर रहा है।

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3. कहानी सुनाने का आलसी तरीका (Lazy Voiceover):
सीरीज का एक बड़ा हिस्सा असुरक्षित और थकाऊ वॉइसओवर नरेशन से भरा है। ऐसा लगता है कि मेकर्स को अपनी कहानी और दृश्यों पर भरोसा ही नहीं था, इसलिए उन्होंने सब कुछ बोलकर समझाने का आसान रास्ता चुना। यह एक आलसी स्टोरीटेलिंग है जो दर्शकों के अनुभव को कमजोर करती है।

4. धीमी रफ़्तार और कमजोर पायलट एपिसोड:
सीरीज का पहला एपिसोड बहुत धीमा और कमजोर है। यह अपने मुख्य किरदारों को ठीक से स्थापित करने में संघर्ष करता है और कहानी में गहराई लाने के बजाय एक प्लॉट पॉइंट से दूसरे पर कूदने की जल्दी में रहता है।

5. सपोर्टिंग किरदारों की बर्बादी:
सीरीज में कई बेहतरीन कलाकार हैं, लेकिन उन्हें बर्बाद कर दिया गया।

  • तिलोत्तमा शोम जैसी शानदार अभिनेत्री को विष्णु की पत्नी के एक छोटे से रोल में सीमित कर दिया गया है।
  • विष्णु की जासूसों की टीम में, केवल सुकबीर (सोहेल नैय्यर) के किरदार को थोड़ी गहराई मिली है। सुकबीर का आर्क त्याग, त्रासदी और उस नायक बनने की मानवीय कीमत को दिखाता है जो वह कभी बनना ही नहीं चाहता था। सच कहूं तो वह मुख्य किरदार के लिए एक ज्यादा योग्य उम्मीदवार लगता है।


अजीबोगरीब क्लाइमेक्स और आखिरी फैसला

सीरीज का अंत किसी संतोषजनक निष्कर्ष पर नहीं पहुँचता, बल्कि एक अजीब तरह से स्टेज किए गए फिनाले के साथ अचानक खत्म हो जाता है। कहानी एक सुस्त गुफा शूटआउट से अचानक एक शिप असॉल्ट पर कूद जाती है, जिसमें वे किरदार शामिल होते हैं जिनसे हम पहले कभी मिले ही नहीं।

अंत में, 'सारे जहाँ से अच्छा' एक ऐसी सीरीज है जिसमें क्षमता तो बहुत थी, लेकिन वह उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। यह एक भूलने लायक फीचर फिल्म की कहानी लगती है, जिसे बेवजह 6-एपिसोड की सीरीज में खींच दिया गया है। अगर मेकर्स का इरादा सिर्फ एक बड़े मिशन को फ़्लैशी तरीके से दिखाने का था, तो इसे एक फिल्म के रूप में बनाना कहीं बेहतर होता।

तो क्या आपको यह सीरीज देखनी चाहिए?
आप यह सीरीज नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं।


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